भारत में सबसे कम डाइवोर्स केस {Divorce case} क्यूं हैं ?
भारत में 1000 शादी में से कुछ 13 शादियों हैं जिनका डाइवोर्स हो जाता हैं | ये आकदा बाकी देशो के मुकाब्ले बहुत काम है|
हमारे भारत देश में शादी को बहुत मेहता दिया जाता हैं इसलिये अपको जान कर हेरानी होगी की डाइवोर्स के लिये हिन्दी में कोई शब्द ही नहीं बना हैं,और उर्दू में divorce को तलाक कहा जाता हैं पर सिर्फ डाइवोर्स के लिये शब्द नहीं
होने की वजाह से शादियाँ नहीं चल रही हैं |
भारती संस्कृति को हमेशा से ही इस तरह बताया गया हैं की वर्षों से चलती आई प्रथा को ही हम करते चले आरहे हैं चाहे वो सही हो या गलत
फिर भी कुछ एसी बातें हैं जो आप जानते हुवे भी अंजान हो
बचपन से हर लड़की को सिखा दिया जाता हैं की उसका ससुराल ही उसका घर हैं और पति देवता और किसी को देवता (पति) के खिलाफ बोलने का हक नहीं दिया जाता हैं ,अपनी खुशी से अधिक औरत के लिये संस्कृति और संसार महत्वपूर्ण रखता हैं |
लड़की जिस घर में बचपन से रहती हैं, उस घर से उसे ये कहकर दूसरे घर भेजा जाता हैं की ससुराल ही उसका घर हैं पर ससुराल में अगर कुछ भी हो जाता हैं,तो उस कहाँ जाता हैं की अपने घर चली जा पर वो कहाँ जाये क्यूं की जिन दोनों घरो को अपना समझा वो तो कभी उसके हुए ही नहीं | इसलिये मार खाने के बाद भी उसे वही गुट गुट के जीना पड़ता हैं |
अधिक शिक्षित नहीं होने की वजाह से भी वो बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पति हैं की और घर छोड़ चली भी जाए तो अपना पेट कैसे भरेगी ?
अपने समाज,अपने माँ-बाप,घर-परिवार की बदनामी के डर से भी वो पुरी उम्र रिश्ते निभा जाती हैं, जिनमे उसने कभी दो पल की खुशियाँ भी नहीं देखी हो |
ऐसा नही हैं की औरत में हिम्मत नहीं होती हैं बच्चे को जन्म देने का महान सोभागय सिर्फ भगवान ने औरत को दिया हैं, उसके पास शक्ति तो हैं पर उसके पास कोई ऐसा नहीं होता जिसके पास वो जा सके | जो औरत पुरे जीवन भार रिश्ते बनाती रहती हैं पर फिर भी उसके पास ऐसा कोई नही जिसके पास वो अपनी शादी तोड़ के जा शक्ति हो|
आज भी भारत में लाखो घर हैं, जिनमे औरतों को बोलने का मौका तक नही दिया जाता हैं,अपनी खुशी की लड़ाई लड़ना तो बहुत दुर की बात हैं |
हमे बदलाव के लिये कुछ ज्यादा बड़ा काम नही करना हैं, बस हर बच्चे को इतना पढ़ना हैं की वो अपने हक के लिये लड़ने की हिम्मत कर पाये, बाकी वो खुद कर ही लेगी|
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